सुनो सुनो सब व्यथा मेरी मैं भविष्य का अभियंता हूं
पहले बनता था विद्या से अब लक्ष्मी से भी बनता हूं
करता हूं नित दिन परिश्रम फिर भी समाज की सुनता हूं
रात रात भर जागकर खुली आंखों से भविष्य बुनता हूं
सुनता हूं बचपन से मैं परिश्रम सफलता की कुंजी है
यह सर्वथा मिथ्या है सफलता उसी की है जिसके पास पूंजी है
देश की तो छोड़ दो ना अब अपने भविष्य का नियंता हूं
सुनो सुनो सब व्यथा मेरी मैं भविष्य का अभियंता हूं
पहले बनता था विद्या से अब लक्ष्मी से भी बनता हूं
पैसों से हारा है परिश्रम इन नेताओं की सेवा है
कहने को है जनप्रतिनिधि क्या कभी जनता को देखा है?
देखा है कभी सड़कों पर आंसू बहाते युवाओं को?
देखा है कभी अंधेरे में दौड़ लगाते पावों को?
देखा है कभी पलायन करते गावों के गावों को ?
देखा है कभी पूरा होते अपने करे दावों को?
देखोगे भी कैसे नेता जी यह तो मामूली सी जनता है
इन्हीं को तो लालच देकर आप का साम्राज्य बनता है
भूखे थे नेताजी भविष्य ही खा गए मेरा अब मैं केवल जनता हूं
ना अब भविष्य रहा ना अब मैं अभियंता हूं
- चंद्रकांत बहुगुणा