My Hindi Motivational Poem | gantavya | Chandrakant Bahuguna
गंतव्य है गिरिराज , मेरा सहस्त्र ही बाधाएं हैं ।
माना कि पथिक हूं मैं अकेला , पर लाखों मुझसे आशाएं हैं ।
कदाचित समय अनुकूल न है , विपरीत ये हवाएं हैं।
कई हैं मेरे प्रतिस्पर्धी कईयों की मेरे संग दुआएं हैं।
है हर क्षण अथक परिश्रम और दुखद हर सायं है ।
फिर भी हर परिस्थिति में सुखद भोर कि आशाएं है ।
अभिलाषाएं हैं ! खुद की बहुत पर अभी बंधन में हूं ।
गंतव्य तो है सुखद , पर अभी कांटो के स्यंदन में हूं ।
चल पड़ा हूं उस विराने में , अब हार - जीत का भय नहीं ।
सूर्य अब उगता ही होगा , यह लौटने का समय नहीं ।
परिस्थितियां प्रतिकूल हैं , पर जीतना हर हाल है ।
भले ही हर एक पग रखना दुष्कर फिलहाल है ।
पहुंच ही जाऊंगा लक्ष्य तक , फिर तो खुशी का आगाज है ।
क्योंकी गंतव्य मेरा गिरिराज है ! गंतव्य मेरा गिरिराज है ...........
- चंद्रकांत बहुगुणा