यादें जो अच्छे स्वप्न सी , क्यूं हो उठी लाचार अभी
यादें जो अब शोर हैं , थी कभी झंकार सी
यादें जो अब खंडर हैं , थी कभी संसार भी
वे शरारतें , वे मस्तियां क्यों इस कदर वे थम गई
जिन यारों से थी जिन्दगी , क्यों अब वह संगम नहीं
मित्रता में फासलों को चीरने का दम नहीं
कहने को है दोस्ती , पर उन दोस्तों में अब हम नहीं
चल पड़े अकेले उन रास्तों पर , जिन रास्तों से थे बेेेेखबर
अलग - थलग से हो चले , मानो तिनके पड़े हों राह पर
हवा का एक वार ही भाग्य बदल सकता है जिनका अब
तूफान से भी लड़ पड़ते थे , वे साथ थे जब
माथे पर परेशानियों के चिन्ह इतने गढ़ गए
बचपन को बचपन में छोड़ हम आगे बढ़ गए
यादें वो बेबस होकर कर रही है इंतजार......
फिर मिलेंगे सब कभी , फिर महक उठेगा वह संसार ।
- चंद्रकांत बहुगुणा
No comments:
Post a Comment