Saturday, September 10, 2022

अभियंता

सुनो सुनो सब व्यथा मेरी  मैं भविष्य का अभियंता हूं

पहले बनता था विद्या से अब लक्ष्मी से भी बनता हूं


करता हूं नित दिन परिश्रम फिर भी समाज की सुनता हूं

रात रात भर जागकर खुली आंखों से भविष्य बुनता हूं


सुनता हूं बचपन से मैं परिश्रम सफलता की कुंजी है

यह सर्वथा मिथ्या है सफलता उसी की है जिसके पास पूंजी है


 देश की तो छोड़ दो ना अब अपने भविष्य का नियंता हूं

 सुनो सुनो सब व्यथा मेरी  मैं भविष्य का अभियंता हूं

 पहले बनता था विद्या से अब लक्ष्मी से भी बनता हूं


पैसों से हारा है परिश्रम इन नेताओं की सेवा है 

कहने को है जनप्रतिनिधि क्या कभी जनता को देखा है?


देखा है कभी सड़कों पर आंसू बहाते युवाओं को?

देखा है कभी अंधेरे में दौड़ लगाते पावों को?

देखा है कभी पलायन करते गावों के गावों को ? 

देखा है कभी पूरा होते अपने करे  दावों को?


देखोगे भी कैसे नेता जी यह तो मामूली सी जनता है 

इन्हीं को तो लालच देकर आप का साम्राज्य बनता है


भूखे थे नेताजी भविष्य ही खा गए मेरा अब मैं केवल जनता हूं

ना अब भविष्य रहा ना अब मैं अभियंता हूं 



                 -  चंद्रकांत बहुगुणा

Saturday, January 23, 2021

Gantavya Hindi Motivational Poem by Chandrakant Bahuguna


My Hindi Motivational Poem | gantavya | Chandrakant Bahuguna 


गंतव्य है गिरिराज , मेरा सहस्त्र ही बाधाएं हैं ।

माना कि पथिक हूं मैं अकेला , पर लाखों मुझसे आशाएं हैं ।



कदाचित समय अनुकूल न है , विपरीत ये हवाएं हैं।

कई हैं मेरे प्रतिस्पर्धी कईयों की मेरे संग दुआएं हैं।



है हर क्षण अथक परिश्रम और दुखद हर सायं है ।

फिर भी हर परिस्थिति में सुखद भोर कि आशाएं है ।



अभिलाषाएं हैं ! खुद की बहुत पर अभी बंधन में हूं ।

गंतव्य तो है सुखद , पर अभी कांटो के स्यंदन में हूं ।



चल पड़ा हूं उस विराने में , अब हार - जीत का भय नहीं ।

सूर्य अब उगता ही होगा , यह लौटने का समय नहीं ।



परिस्थितियां प्रतिकूल हैं , पर जीतना हर हाल है ।

भले ही हर एक पग रखना दुष्कर फिलहाल है ।



पहुंच ही जाऊंगा लक्ष्य तक , फिर तो खुशी का आगाज है ।

क्योंकी गंतव्य मेरा गिरिराज है ! गंतव्य मेरा गिरिराज है ...........







                                               - चंद्रकांत बहुगुणा 

Nature , Uttarakhand , pic by chandrakant Bahuguna


 

Sunday, May 10, 2020

अध्याय - २ ( Interview )

जतिन और दत्त आपस में बात कर ही रहे थे , की तभी दत्त का फोन कुछ आवाज करने लगा , दत्त ने फोन फोन पर कुछ पढ़ा और जतिन से कहा " हमें जगह का पता चल गया है!" फिर  दत्त ने ड्राइवर को जगह का पता बताया और बातचीत फिर से शुरू हो गई ।

जतिन दत्त से बोला " बुरा ना माने तो सर आपसे एक सवाल पूछ सकता हूं ?" हंसते हुए दत्त ने कहा "आज तुम्हारा दिन है तुम मुझसे कुछ भी पूछ सकते हो " "इतने सारे समाचार चैनलों के होते हुए सिर्फ हमारे चैनल को ही क्यों चुना गया " जतिन ने पूछा , "शायद हमारे अच्छे दिन आने वाले हैं " दत्त बोले । "ये सब छोड़ो हम सब पहुंचने ही वाले हैं , मैं चाहता हूं कि तुम तैयार रहो  और जब तुमसे कोई  कोड पूछे तो कहना "OP7" थोड़ी देर बाद गाड़ी निश्चित स्थान पर पहुंच गई ।
दत्त ने कहा " अब सब कुछ तुम पर निर्भर करता है  हमारा सफर यही तक का था फिर मिलते हैं " जतिन गाड़ी से उतरा और दत्त वहां से चल दिए।

थोड़ी देर बाद वहां एक काली LEXUS गाड़ी आकर रुकी और उससे एक गोरा व्यक्ति उतरा पहनावे से किसी विदेशी एजेंसी का अफ़सर जान पड़ता था , वह जतिन के पास आकर खड़ा हो गया और उससे जतिन से पूछा "सर कोड ? " जतिन ने दत्त के दिए कोड को दोहराया " OP7" अफ़सर बोला " धन्यवाद सर मेरा नाम  HARALD है और मैं " AMERICAN FADERAL DEPARTMENT" का एक ऑफिसर हूं , इस ऑपरशन की सुरक्षा की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई है  आप मेरे साथ गाड़ी में चलिए " कहकर वह चलने लगा । जतिन ने चलते हुए कहा "आप विदेशी होकर इतनी अच्छी हिंदी कैसे बोल लेते हैं ? " हरॉल्ड ने कहा " ये हमारा काम है सर मुझे हिंदी और अंग्रेजी के साथ - साथ 5 भाषाएं और आती हैं " गाड़ी में बैठने से पहले उसे जतिन की एक स्कैनर से जांच की और फिर उसे अन्दर बैठने को कहा ।

दोनों अन्दर बैठ गए तब हराल्ड ने एक कप जतिन की तरफ कर दिया , जतिन ने पूछा " यह क्या है ?" " कुछ खास नहीं बस एक syrup घबराहट कम करने के लिए " हराल्ड बोला , जतिन ने लिक्विड पी लिया फिर हराल्ड ने ड्राइवर को चलने का इशारा किया , " कुछ ठीक नहीं लग ..... " कहकर जतिन बेहोश हो गया ।

जब जतिन को होश आया तो उसने देखा की वह अभी गाड़ी में ही है और हराल्ड उसके सामने ही बैठा है , जतिन अचानक डरकर खड़ा उठा और बोला " तुमने मुझे क्या पिलाया ? " ,  हराल्ड बोला " Congrats Mr. जतिन अपका कार्य वाकई काबिलेतारिफ था , आपकी कम्पनी ने आपके बारे में सही ही कहा था आपका काम अब हो चुका है आप अब घर जा सकते हैं " जतिन के समझ में कुछ नहीं आ रहा था वह हस पड़ा और कहने लगा " अभी तो हम मिले हैं और आपने  दोस्तों की तरह मजाक भी शुरू कर दिया "  पर बाद में उसका चेहरा देखकर वह इतना तो समझ गया कि वह मजाक तो नहीं कर रहा है , जतिन कुछ पूछता इससे पहले हारल्ड बोला " सर अब आपको जाना ही होगा आपके लोग आते ही होंगे "  ।


जतिन गाड़ी से उतरा और हराल्ड वहां से चल दिया , हराल्ड के वहां से जाते ही कुछ लोग पास की गाड़ी से उतरे और जतिन को पकड़ लिया इससे पहले की वह कुछ समझ पाता उन्होंने उसे एक इंजेक्शन लगाकर बेहोश कर दिया , जब उसे होश आया तो उसने खुद को एक बंद कमरे में कुर्सी से बंधा हुआ पाया और उसके सामने एक ओर आदमी बंधा हुआ था , जतिन ने उससे पूछा कि " उसे यहां क्यों लाया गया है ? " मेरा नाम प्रीतम है मैं एक स्कूल में जर्मन पढ़ाता हूं ये लोग आपसे पूछताछ करना चाहते हैं इसलिए मुझे बुलाया है " तब तक एक व्यक्ति वहां आया और प्रीतम से कुछ बोला , प्रीतम ने हिंदी में बोला " ये जानना चाहते हैं कि तुमने वहां क्या - क्या देखा ? " " कुछ नहीं ! वो मुझे कहीं लेकर ही नहीं गए "जतिन बोला , प्रीतम ने अनुवाद किया और बोला " ये कह रहे हैं की तुम वहां पूरे एक महीने थे समाचार में तो तुम्हारी मृत्यु की खबर तक आ गई थी अगर तुम वहां नहीं थे तो कहा थे ?" 

Friday, December 20, 2019

मूक ( कविता)



वह मूक नहीं है , पर क्यों बोले उस जड़ इंसान से 
भीक नहीं मांगेगा , वह मरेगा सम्मान से 

प्रतिपल मरता जाए वह मनुष्य के अपमान से 
जीवन का संघर्ष करे वह पूरी जान और शान से 

जिस खेत से उपजे अन्न के हम खाते हैं ग्रास कई
उसी खेत पर जो हल लगाए उसके लिए घास नहीं 

मांस तक उसका खाएं जिसका हमने दूध पिया
हे मानव , उसकी लाचारी का इस्तेमाल तुमने खूब किया 

चुप रहा वह तब भी जब उसके घर को राख किया
पीकर अपने गुस्से को उसने हर बार हमें माफ किया 

साथ दिया उसने हर मोड़  पर जिस इंसान का
वही मानव भूका निकला उस मूक की जान का 

हे मूर्ख ! क्यों बसी उसपर तेरी जान है 
यह किसी का सगा नहीं , यह एक इंसान है 






नोट - आप सभी से अनुरोध हैं ,  जहां तक हो सके  इनकी सहायता करें । क्योंकि उनकी इस  दयनीय स्थिति  के जिम्मेदार   भी हम ही हैं । 



                            - चंद्रकांत बहुगुणा 

Thursday, December 12, 2019

बचपन ( कविता )

यादें जो धूमिल हैं अब , पर ले उठे आकार कभी 
यादें जो अच्छे स्वप्न सी , क्यूं हो उठी लाचार अभी 
यादें जो अब शोर हैं , थी कभी झंकार सी 
यादें जो अब खंडर हैं , थी कभी संसार भी

वे शरारतें , वे मस्तियां क्यों इस कदर वे थम गई
जिन यारों से थी जिन्दगी , क्यों अब वह संगम नहीं 
मित्रता में  फासलों को चीरने का दम नहीं 
कहने को है दोस्ती , पर उन दोस्तों में अब हम नहीं 

चल पड़े अकेले उन रास्तों पर , जिन रास्तों से थे बेेेेखबर 
अलग - थलग से हो चले , मानो तिनके पड़े हों राह पर 
हवा का एक वार ही भाग्य बदल सकता है जिनका अब 
तूफान से भी लड़ पड़ते थे , वे साथ थे जब 

माथे पर परेशानियों के चिन्ह इतने गढ़ गए 
बचपन को बचपन  में छोड़ हम आगे बढ़  गए


यादें वो बेबस होकर कर रही है इंतजार......
फिर मिलेंगे सब कभी , फिर महक उठेगा वह संसार ।

   
                                -   चंद्रकांत बहुगुणा 

Wednesday, December 11, 2019

इंटरव्यू (उपन्यास) अध्याय - 1 , भाग 1

"आज बहुत खास दिन है" !  "गलती ना होने पाए" ! " लाखों मिन्नतें करने के बाद सरकार ने उनका एक साक्षात्कार लेने की अनुमति दी है , और हमारा चैनल ही पहला वह इकलौता चैनल बनेगा जो यह साक्षात्कार (interview) लेगा, और वह भी दुनिया के सबसे ज्यादा जरूरी इंसान का "  पसीने से तर world wide news channel (W.N.C)  के मालिक श्रीमान आलेख दत्त अपने कार्यकर्ताओं को समझा रहेे थे ।
 
"यह बात याद रखना कि उस आदमी की सुरक्षा 12 देशों की सेना के बेहतरीन जवान कर रहे हैं , अपनी हर एक क्रिया सोच समझकर और नियंत्रित तरीके से करना , अन्यथा आपको सफाई देने का भी समय नहीं मिलेगा " ।
"वैसे"! जिसे साक्षात्कार लेना है वह कहां है ? ,  सर जतिन अपने कक्ष में बैठे हैं , क्या मैं उन्हें बुलाऊं ? , सुरक्षाकर्मी ने कहा।

" मैं ही जाता  हूं " यह कहकर दत्त चल दिए।
दत्त कक्ष के अंदर पहुंचे जहां जतिन बैठा था , और बोले " सारी तैयारियां हो गई है जतिन ?" , जतिन ने  सर खिलाते हुए कहा हां सर तैयारियां तो पूरी हो चुकी है मगर थोड़ी घबराहट सी हो रही है ।
अभी-अभी मुझे एक कर्मचारी का ई-मेल आया और उसमें लिखा था कि साक्षात्कार लाइव होगा और भूलकर भी मैं कोई ऐसा प्रश्न ना करूं जिससे उनकी मानसिक स्थिति पर कोई प्रभाव पड़े ऐसा करना मेरे लिए अच्छा नहीं होगा , साक्षात्कार के दौरान ऐसे प्रश्न होना तो स्वाभाविक है , मैं आशा करता हूं कि जिनका में साक्षात्कार लेने जा रहा हूं वह स्वभाव के अच्छे हो।
दत्त गहरी सांस लेते हुए बोले देखो थोड़ी घबराहट तो स्वाभाविक है क्योंकि कुछ चंद अफसरों और हमारे राष्ट्रपति के अलावा किसी को यह भी नहीं पता की या इंसान कैसा दिखता है, 
मुझे तुम्हारी काबिलियत पर कोई संदेह नहीं परंतु मैं फिर भी कहूंगा कि अपने हर कार्य को सोच समझकर और ध्यान से करना, जैसा आप कहें जतिन ने कहा।
अचानक दत्त हड़बड़ी में बोले मुझे 10 मिनट के अंदर अंदर बाहर गाड़ी में मिलना उन्होंने अभी तक हमें स्थान भी नहीं बताया है और देरी की गुंजाइश भी नहीं है यह कहकर दत्त बाहर चल दिए ।

दत्त के जाने के बाद जतिन घुटनों के बल बैठ गया और आंखें बंद कर ली 5 मिनट के मौन के बाद अब वह तैयार था , अपने जीवन का सबसे बड़ा साक्षात्कार लेने के लिए।

जतिन औफिस से  नीचे उतरकर सड़क की दूसरी ओर गया जहां जतिन की गाड़ी खड़ी थी, दत्त ने जतिन को अंदर आने को कहा ,जतिन अंदर बैठ गया।
 
जतिन ने आश्चर्य से पूछा  सर मेरे कैमरामैन और बाकी सहकर्मी कहां हैं ? , दत्त खांसते हुए बोले देखो मैं तुम्हे पहले बताना तो चाह रहा था , पर मुझे लगा तुम घबरा जाओगे उन्होंने बाकी सबको आने से मना किया है सिर्फ और सिर्फ तुम हो , देखो मैं नहीं जानता कि उस आदमी में इतना खास क्या है पर कोई भी देश उस पर एक आंच भी नहीं आने देना चाहता , तुम्हे भी पूरे मेडिकल के बाद ही अनुमती मिलेगी , शायद ये कपड़े वो अंदर भी ना ले जाने दें।

  To be continued ........






अभियंता

सुनो सुनो सब व्यथा मेरी  मैं भविष्य का अभियंता हूं पहले बनता था विद्या से अब लक्ष्मी से भी बनता हूं करता हूं नित दिन परिश्रम फिर भी समाज की ...